जरूरतों को कम कर के देखो तो बहुत कुछ हैं..............( विचार हैं ) डॉ तरूण दुबे
( विचार हैं )
जरूरतों को कम कर के देखो तो बहुत कुछ हैं जीवन में, कमाल हैं, और जरूरतों को बढाते जाओ तो भी बहुत कुछ हैं जीवन में ।
करना क्या हैं ये समझ नहीं पा रहा हैं इंसान जीवन में, कमाल हैं, और पाना क्या हैं ये भी समझ नहीं पा रहा हैं इंसान जीवन में ।
आगे बढतेहैं तो जरूरतें बढतीहैं, कमाल हैं, पीछे हटते हैं तो भी जरूरतें बढतीहैं ।
ये सोच ही हैं जो जरूरतें बढाती- घटाती हैं, इसलिए इंसान के चेहरे पर कभी खुशी कभी उदासी रहती हैं ।
इस कम और ज्यादा के घेरे में इंसान भटक रहा हैं, जबरदस्ती संघर्ष किये जा रहा हैं ।
कुछ थोड़ा भी मिल जाने पर बड़ा लेने की सोच रहा हैं, और नहीं मिलने पर फिर से अपनी जरूरतों को कोस रहा हैं ।
शायद जरूरत का रूप बदल रहा हैं, इंसान इस चकाचौंध में समझ हीं नहीं पा रहा हैं ।
सच तो ये हैं कि इंसान खुद अपने आप में जरूरत बनता जा रहा हैं ।
खैर कोई बात नहीं
( विचार हैं )
डाॅ. तरूण दुबे
सहायक आचार्य, समाजशास्त्र